आज अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपके साथ अपने शून्य शिखर ट्रैक का अनुभव साझा करने जा रहा हूँ। कण्वाश्रम से शून्य शिखर ट्रैक करने की प्रबल इच्छा कई वर्षों से मेरे मन में पल रही थी लेकिन कभी मौसम व कभी किसी साथी के न मिलने की वजह से यह इच्छा अधूरी ही रही। वैसे पिछले वर्ष 2023 में मैं शून्य शिखर की यात्रा सड़क मार्ग से कर चुका हूँ। हिमालयन डिस्कवर न्यूज के संस्थापक व वरिष्ठ पत्रकार आदरणीय बड़े भाई सहाब मनोज इष्टवाल जी व कर्मठ समाजसेवी आदरणीय चाची जी प्रणिता कण्डवाल जी के साथ पहली दफा मुझे शून्य शिखर की यात्रा करने का अवसर प्राप्त हुआ था। परंतु पैदल ट्रैक करके शून्य शिखर जाने की योजना कब से मन में ही थी। लेकिन इस वर्ष शून्य शिखर ट्रैक करने की अधूरी इच्छा तब पूरी हो गई जब मेरे मित्र अमन बडोला का मुझे फोन आया और हमेशा की तरह उसका पहला सवाल यही था कि कहीं ट्रैक पर चलें? मैंने भी तपाक से उत्तर दिया, हाँ चलते हैं। सामने से उतनी उत्सुकतावश उसने पूछा कि कहाँ और मैं तो जैसे इस मौके के ही इंतजार में था, मैंने तुरंत उत्तर दिया “शून्य शिखर (Shoonya Shikhar)”! आश्चर्यपूर्ण तरीके से अमन के मुँह से निकला, शून्यशिखर! ये कहाँ है? फिर मैंने उसे व्यावहारिक रूप में बताया जो ऊपर सामने उस पहाड़ी पर लाईट चमकती है न, वो है शून्यशिखर! उसने एक स्वर में बोला, “ठीक है चल”। बस फिर क्या था योजना बन गई और दिन तय हुआ रविवार, 25 फरवरी 2024। तो आइए आगे ब्लॉग को पढ़ते हुए मानसिक यात्रा के माध्यम से जानते हैं इस खूबसूरत व रहस्यमय शून्य शिखर (Shoonya Shikhar) के बारे में।
कण्वाश्रम से शून्य शिखर की ओर
रविवार, 25 फरवरी को सुबह 7 बजकर 41 मिनट पर हमने कण्वाश्रम (चौकीघाट) से शून्यशिखर का ट्रैक प्रारंभ किया। ऋषि कण्व की तपोभूमि व चक्रबर्ती सम्राट राजा ‘भरत’ की जन्मस्थली ऐतिहासिक धरोहर कण्वाश्रम पर अगर आप विस्तृत रूप से जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप “कण्वाश्रम – एक पौराणिक एंव ऐतिहासिक स्थल” पर लिखा मेरा ब्लॉग पढ़ सकते हैं। इस ब्लॉग में कण्वाश्रम पर संपूर्ण तथ्यात्मक जानकारी विस्तृत रूप से साझा की गई है।
रास्ते भर में काम आने वाला जरूरी सामान हमने रख लिया था। जिसमें दिन के लिए रोटी और सब्जी हम दोनो घर से ही पैक करके ले आए थे और अमन ने कुछ फल जैसे अंगूर, संतरे व केले भी रख लिए थे। दरअसल शून्य शिखर का ट्रैक करने से पूर्व हम दोनो में इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही थी कि वहाँ पहुँचकर हमें रूकना है या आज ही वापसी करनी है। मेरा मत था कि एक रात वहाँ जरूर रूकना चाहिए। उसके पीछे कारण था रात्रि में शून्य शिखर से भाबर व मालन घाटी की तलहटी में रहने वाली बसासतों का मंत्रमुग्ध कर देने वाला नजारा! टिमटिमाते तारों की तरह नजर आने वाली लाईटों का सुंदर नाजारा जो कि किसी लाइट शो से कम प्रतीत नहीं होता। और यह लाइट शो देखने का मेरा बहुत मन था। लेकिन अमन आज ही वापसी करना चाहता था। शायद उसके अगले दिन की कुछ अन्य योजना थी। फिर हम दोनो ने परस्पर तय किया कि वहीं जाकर निर्णय करेंगे कि रूकना है या वपासी आना है।
हमने, कलकल बहती पतित-पावनी मालिनी नदी के साथ-साथ चलना प्रारंभ किया। यूँ तो हर बरसात में मालन घाटी अपना स्वरूप बदलती ही रहती है लेकिन इस बार पिछली बरसात में ऊपरी हिस्सों में बादल फटने की वजह से पूरी मालन घाटी का रूप बदल सा गया था। नदी के किनारे पर सिंचाई विभाग द्वारा निर्मित बैराज की ऊँची-ऊँची दीवारों तक मलबा भर चुका था। नहर से नीचे नदी तक समतल मैदान सा नजर आ रहा था। खैर परिवर्तन ही संसार का नियम है। प्रकृति खुद को सँवारना जानती है। हमने आगे बढ़ना शुरू किया। एक किलोमीटर आगे चलने पर घाटी संकीर्ण होती चली गई और साथ ही बढ़ती चली गई घाटी की खूबसूरती भी। जब कभी भी मैं यहाँ से होकर गुजरता हूँ तो मेरा मन न जाने क्यों शांत होना शुरू हो जाता है। एक गहरी अनुभूति होती है। शायद यह इतिहास में दर्ज महर्षी कण्व के तपोबल का ही असर हो जो यहाँ मौजूद प्रत्येक जीव व पेड़-पौधों को सदा हरा भरा व खुशहाल रखता है।
लालपुल
मालन घाटी पूर्व काल से ही मथणा, मलनिया-बडोल, किमसेरा, मयड्डा, गौड़गाँव, भरतपुर, सिमलना, नाथुखाल, जुड्डा, ईड़ा, पौखाल आदि गाँवों के बाशिंदो का पैदल मार्ग था। दूरदराज से पहाड़ का मानुष, चौकीघाट नमक व राशन की खरीदारी के लिए आता रहता था। जरूरत के सामान से लदे खच्चरों का दल यहाँ से अक्सर गुजरा करता था। लेकिन सड़कों के निर्माण ने लोगों को इस पैतृक मार्ग से दूर कर दिया। यह लाल पुल उसी पैतृक मार्ग की निशानी है जो वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अपने जीवन के आखिरी पल जी रहा है। यह लालपुल आज भी उन राहगीरों को याद करता है जिन्होंने इस पर चलकर अपने जीवन को सींचा। अपने जीर्णोद्धार के इंतजार में अपनो की राह ताकते लाल पुल को देख मन भारी सा हो गया।
सहस्त्रधारा
मालिनी नदी में बाढ़ में बहकर व चट्टानों से टूटकर आये बड़े-बड़े विशालकाय पत्थरों को लाँगकर नदी में हम आगे बढ़ रहे थे। आगे बढ़ने के साथ ही मालन घाटी के रहस्य व खूबसूरती दोनो ही उजागर होने लगे थे। ऐसी ही खूबसूरती का मुख्य आकर्षण है मालिनी नदी के दाईं ओर पर पहाड़ी चट्टानों से झुरमुट गिरती सहस्त्रधारा। भीषण बारिश व भूस्खलन के कारण वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण हो चुकी यह निरमल सहस्त्रधारा पूर्व में अत्यंत दर्शनीय थी। अभी कुछेक धाराएँ ही बची हैं जो निरंतर बहती रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस सहस्त्रधारा का जल औषधीय गुणों से भरपूर है और इस जल को पीने व इसमें नहाने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है।
मालिनी नदी को पीछे छोड़, शून्यशिखर के लिए चढ़ाई शुरु
विभिन्न जलधाराओं, झरनों आदि को पार करते हुए अब हमें नदी से ऊपर की ओर चढ़ना था। लेकिन यह इतना आसान नहीं होने वाला था। क्योंकि पिछली रात जो मैंने गूगल अर्थ पर शोध करके रास्ता बनाया था वो घाटी की भूल-भुलैया में कहीं खो सा गया था। मोबाईल में नेटवर्क भी नहीं आ रहे थे जिस कारण हम नेविगेशन की भी मदद नहीं ले पा रहे थे। और जिस जगह से हमने ऊपर चढ़ना था उस जगह से हम काफी आगे निकल आए थे। इसलिए फिर इसी जगह को हमने सही मानकर ऊपर चढ़ना शुरू कर दिया।
न कोई रास्ता, न कोई पगडंडी और न ही कोई समतल भू-भाग! हम अब चुनौतीपूर्ण स्थिती का सामना करने वाले थे। क्योंकि हमें लैंटाना झाड़ी के बीच से होकर आगे का रास्ता बानान था। लैंटाना झाड़ी के कारण पेड़-पौधे जंगलों में अपना अस्तित्व खो रहे हैं। जिस तरह से वनों में आग फैलती है, उसी प्रकार लैंटाना का तेज फैलाव हरियाली और जंगलों को निगलता चला जाता है। मालिनी नदी की सहायक जलधारा का अनुसरण करते हुए हमने आगे बढ़ना शुरू किया था। और जलधारा के आखिरी छोर पर पहुँचकर हमें खड़ी चोटी पर चढ़कर जाना पड़ा जो कि उस स्थिती में दुष्कर मालूम पड़ रहा था। जैसे-तैसे हमने पहाड़ चढ़ा और अचानक मोबाईल में किसी नोटिफिकेशन की आवाज आई। मैंने मोबाईल ऑन करके देखा तो नेटवर्क आने लगे थे। इसका मतलब था हम नदी की तलहटी से काफी ऊपर आ चुके थे। मैं खुश था कि नेटवर्क आ गए क्योंकि अब मैं आगे का रास्ता आसानी से देख सकता था। मैंने गूगल अर्थ ओपन किया और फिर अपनी लोकेशन देखी तो तब पता चला कि हम तो भटक चुके हैं। जहाँ से हमें आना था हम वहाँ से काफी आगे निकल चुके थे। लेकिन राहत की बात ये थी कि जहाँ पर हम अभी थे वो हमारी मंजिल शून्य शिखर (Shoonya Shikhar) से नजदीक नजर आ रही थी। हमने रास्ते का अच्छे से अनुमान लगाया और फिर आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
अमन मजबूत मनोबल के साथ पहाड़ चढ़ रहा था। ऐसा साथी ही इन दुर्गम रास्तों को पार कर सकता था। उसकी मजबूत इच्छा शक्ति व आगे बढ़ने का जुनून देख मैं काफी प्रभावित था। वो एक अच्छा क्लाइंबर और बेहतरीन ट्रैकर है।
मेरी थकान तब छू मंतर हो गई जब मैंने रास्ते में फ्योंली के सुन्दर खिले हुए फूलों को देखा। बसंत ऋतु के आगमन के प्रतीक फ्योंली ने अचानक ही सारे मनोभावों को बदल दिया।
हमने थोड़ी चढ़ाई चढ़ी ही थी कि अचानक अमन को एक रास्ता सा नजर आया। जब मैंने भी जाकर देखा तो वो एक पुराना रास्ता सा लग रहा था। शायद यह वही पौखाल-कण्वाश्रम मार्ग का एक हिस्सा होगा जो विकट प्राकृतिक परिवर्तनों की भेंट चढ़ चुका था। जिसमें आगे लाल पुल से मालिनी नदी को पार किया जाता है। अब आगे चलना थोड़ा सरल मालूम पड़ रहा था। पत्थरों की बनी पगडंडी के सहारे हमने तेजी से आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
ग्राम ईड़ा तल्ला
थोड़ी ही दूर चलने पर एक खुला मैदान सा नजर आया और साथ ही कुछ घर भी नजर आने लगे। मैं समझ गया था कि हम अब शून्य शिखर के नजदीक ही हैं। चलते-चलते हम एक घर पर पहुँचे जो कि रास्ते में ही पड़ता है। जैसे ही हम घर पर पहुँचे तो अचानक अजनबियों को देख घर के लोग थोड़ा-बहुत असहज हो गए। यह स्वाभाविक ही था। क्योंकि जिस रास्ते से हम आ रहे थे उस रास्ते से कई वर्षों से कोई नहीं आया था। उधर जाने की जरूरत भी किसी को महसूस नहीं होती होगी। हमने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय दिया व उनका अभिवादन स्वीकार किया। फिर बुजुर्ग माता जी की बड़ी बहु ने हमारे लिए खाट बिछाई।
मैं देख रहा था कि इस निर्जन जगह पर, सड़क मार्ग भी जहाँ अभी तक नहीं पहुँचा, वहाँ हम अजनबी आगंतुकों के लिए इतना प्रेम कि खाट में सूख रहे मसालों व कुछ घर के सामान को उन्होंने झट से हटाया और एक साफ चादर बिछाकर हमारे लिए आसन लगा दिया। मन अत्यंत प्रसन्न था। बातों ही बातों में बुजुर्ग माता जी ने तपाक से हमसे पूछा की जिस रास्ते से तुम आए उस रास्ते में तुम्हें हाथी या बाघ नहीं दिखाई दिया। हमारे मना करने पर उन्होंने हमें कुछ ही दिन पहले का किस्सा सुनाया जब बाघ ने उनके मवेशियों को अपना निवाला बना लिया था।
जिन घरों में खुशहाल हुआ बचपन, आज वो भूतीय बन बैठे हैं
बुजुर्ग माँ के आतिथ्य से जहाँ एक ओर मन अत्यंत प्रसन्न हो रहा था वहीं दूसरी ओर मन खराब भी हो रहा था। कारण था पास में ही स्थित खण्डहर में तब्दील हो चुका पुरखों का घर। जब हमने इस घर के विषय में जानकारी हासिल करनी चाही तो बातचीत में पता लगा कि इस मकान के मालिक अब भाबर में बस गए हैं। मैंनै अपना बैग उतारकर घर के भीतर जाकर देखने की कोशिश की तो दीवार पर मकान मालिक के नाम के साथ धुंधले हो चुके शब्दों में 1903 लिखा हुआ था। यानी कि यह मकान 102 वर्ष पुराना है। मैं कुछ पल सोच में पड़ गया! बीसवीं सदी के जिस घर को वर्तमान में विरासत के रूप में संजोकर रखना चाहिए था वो ही घर जीर्ण-शीर्ण हालत में अपने जीवन के आखिरी पलों को गिन रहा था। आखिर ऐसी क्या मजबूरी रही होगी जो बाहर जाकर बसने के बाद इस घर के वासियों ने पीछे मुड़कर वापस कभी नहीं देखा! आखिर ऐसा क्या कारण रहा होगा कि इस घर की देखभाल के प्रति वो इतने उदासीन हो गए कि पुरखों की दम तोड़ती और उजड़ती विरासत के प्रति उनके मन में संवेदना ही खत्म हो गई।
पलायन के दर्द से कराहती पूर्वजों की निशानी
मकान की दीवार पर जो नाम लिखा है उसे मैं सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं करना चाहूँगा। लेकिन अगर उन सज्जन तक मेरा यह ब्लॉग पहुँचता है तो उनसे भावपूर्ण निवेदन है कि अपने पुरखों की विरासत को इस तरह से वीरान खण्डहर न बनने दें! पूर्वजों के इस घर के प्रति एहसानमंद होने की बजाए एहसान फरामोश मत बनिए। वापस आइए और फिर से दम तोड़ती यादों को संजोकर अपने पुरखों का कर्ज उतारने का प्रयास कीजिए।
इड़ा तल्ला नैथानी लोगों का गाँव है। जहाँ पर नैथानी परिवार नैथाणा से आकर बसे थे और बाद में इस परिवार के लोग भाबर के हलदुखाता, मगनपुर आदि गाँवों में बस गए और समृद्ध एंव जमींदार होकर, पढ़-लखकर अच्छे पदों पर नियुक्त हुए और कुछ विदेश चले गए। 102 वर्ष पुराने जिस मकान की चौखटों को दीमक कुतर रही है उसी मकान ने कभी इस पर रहने वालों को पाला होगा। शहर की चकाचौंध में अपने पुरखों की विरासत को पीठ दिखाकर जाने वालों –
“ये श्राप है भूतीय हो चुके इन खण्डहर घरों का,
जिस चकाचौंध को देखने के लिए तुम्हारी आँखों ने
इन पुरखों के घौंसलों को देखने से इंकार कर दिया,
वो चकाचौंध ही तुम्हें इन घरों की तरह वीरान करेगी।”
धनवीर सिंह जी की मधुर बांसुरी की धुन
जैसे ही हम जंगल की ओर से इस घर में पहुँचे तो मेरी सबसे पहली नजर धनवीर सिंह जी और उनके गले में लटकती बाँसुरी पर पड़ी। मैंने तुरंत उनसे कहा कि मुझे आपकी बंसुली की धुन सुननी है। उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन उनकी कोमल मुस्कान ने मेरे निवेदन पर अपनी हामी भर दी थी।
शून्यशिखर – जहाँ मन स्वतः ही शून्य होने लगता है
लगभग 4 घण्टे का ट्रैक करके हम दिन में लगभग 12 बजे के आसपास शून्य शिखर (Shoonya Shikhar) पहुँच चुके थे। कण्वाश्रम से शून्य शिखर तक की कुल दूरी 7.17 किलोमीटर की है। देवभूमि उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के विकासखण्ड क्षेत्र दुगड्डा के अंतर्गत ग्राम ईड़ा मल्ला में शिवालिक हिमालय की रमणीक कंधराओं में स्थित “अखिल भारतीय विहंगम योग संस्थान शून्य शिखर आश्रम” प्राकृतिक सौंदर्य और मानसिक शांति का आद्यात्मिक केंद्र है। शून्य शिखर सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज की कठोर साधना स्थली है। छोटी सी मिट्टी की गुफा में कई वर्षों तक एकांत में रहकर इस तपस्थली में रहकर सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने विश्व के महान आध्यात्मिक सद्ग्रन्थ स्वर्वेद की रचना की थी। सद्गुरु का यह आश्रम सड़क मार्ग से उत्तराखण्ड के कोटद्वार से 24 किलोमीटर ऊपर बल्ली गाँव और वहाँ से 5 किलोमीटर कांडई से आगे दुर्गम पहाड़ियों को पार करने के बाद है।
ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1926 के आसपास वह कण्वाश्रम से 8-10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शून्य शिखर आए। यहाँ गुफा में उन्होंने कुछ दिन तप किया और फिर यहाँ से चले गए। मान्यता है कि वर्ष 1946 में उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई और शिवालिक हिमालय की इन कंदराओ की ओट में स्थित गुफा में ही सदाफल देव जी महाराज ने स्वर्वेद ग्रंथ की रचना कर दी। कालान्तर में यह ग्रंथ विश्वविख्यात हो गया। सदाफल देव जी महाराज के नाती स्वतंत्र देव जी महाराज ने एक रजिस्टर्ड संस्था बनाई और देश-विदेश से धन इकठ्ठा करके शून्य शिखर (Shoonya Shikhar) में एक बहुत बड़े अखिल भारतीय स्तर के विहंगम योग संस्थान की योजना बनाई।
यहाँ पहुँचकर सबसे पहले हमने घर से लाई हुई रोटी खाई, क्योंकि कठिन चढ़ाई के कारण हमें बहुत जोरो की बूख लगी थी। खाना खाने के बाद हमने थोड़ी देर सुस्ताने का फैसला किया। यह कालू है जो मेरे साथ सुस्ता रहा है। यह धनवीर सिंह जी का स्वांग है जो उनके घर से ही हमारे पीछे-पीछे लग गया था। लगभग 2 बजे के आसपास हमने आखिरी निर्णय लिया कि हमें रूकना है या आज ही नीचे उतरना है। तो आप सबकी जानकारी के लिए यह बता दूँ कि शून्य शिखर आश्रम में किसी भी व्यक्ति को रूकने की आज्ञा नहीं दी जाती। यह आश्रम का सख्त नियम है। यदि आप विहंगम योग के साधक हो व इनके विहंगम योग संस्थान से जुड़े हो तो आप यहाँ रूक सकते हैं। इस स्थिती में तय हो गया कि हमें आज ही नीचे उतरना है। कुछ फोटोग्राफ्स लिए और फिर हमने नीचे कण्वाश्रम के लिए उतरना शुरू कर दिया।
आत्मा का समर्पण: शून्यशिखर में ध्यान और योग
वैदिक कालीन मालन घाटी क्षेत्र में पवित्र शून्य शिखर (Shoonya Shikhar) आध्यात्मिक साधकों के लिए एक उपयुक्त स्थान है। सदाफल देव जी महाराज के तपोबल से यह स्थान सात्विकता से भरपूर है। यहाँ पहुँचकर मन स्वतः ही शांत होने लगता है। विचार शून्य स्थिती घटने लगती है। सांसे धीमी होने लगती है। साथ ही मन व शरीर में हल्केपन का एहसास होने लगता है। सरसराहट करती ठण्डी बयार आपके शरीर की पीड़ा को दूर करने का काम करती है। अगर आप एक योग साधक हैं और यदि आप ध्यान के माध्यम से स्वंय की भीतर जाने के यात्रापथ पर हैं तो यहाँ कुछ ही देर के ध्यान से आपको गहरी अनुभूति हो सकती है। इस जगह की शक्ति आपको आत्मा से एकीकार होने में मदद करती है। यहाँ योग साधकों को गहरी रहस्यपूर्ण अनुभव भी हुए हैं जिनसे उनका कायाकल्प हो गया।
शून्य शिखर का मंत्रमुग्ध करता प्राकृतिक सौंदर्य
सिंधुतल से 1,267.44 मीटर की ऊँचाई पर बाह्य हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित शून्य शिखर (Shoonya Shikhar) अत्यंत रमणीक एंव शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करने वाला स्थान है। यहाँ से हिमाच्छादित हिमालय के नयनारभिराम दिव्य दर्शन होते हैं। सूर्योदय व सूर्यास्त का नजारा मन को प्रफुल्लित एंव गहरी शांति प्रदान करने वाला होता है। यहाँ मौजूद एकांत आपको स्वयं से जोड़ देता है। दांई और मणिकूट पर्वत पर स्थित ग्राम देवता महाबढ़ का सुंदर मंदिर, उत्तर-पूर्व दिशा में चरेख पहाड़ी, दक्षिण-पश्चिम में कलकल बहती सदानीरा मालिनी नदी और भाबर का खुला मैदान यहाँ आने वाले साधकों को यादगार अनुभव प्रदान करता है।
शिवालिक की पहाड़ियाँ महर्षी कण्व, महर्षी विश्वमित्र, ऋषि दुर्वासा, ऋषि मरीचि, ऋषि चरक, ऋषि कश्यप व ऋषि भृगु आदि ऋषियों की साधना स्थली रही है। संपूर्ण मालन घाटी क्षेत्र में इन दिव्य आत्माओं के तप का प्रभाव सरलता से नजर आता है। अतः यह इनके तपोबल का ही प्रभाव है कि यह घाटी निरंतर फलती-फूलती आई है। इसकी सुंदरता के चर्चे चहुंओर सुनाई देते हैं। यह पवित्र घाटी सदा ही इन देव ऋषियों की ऋणी रहेगी।
शून्यशिखर से नजर आता खूबसूरत भाबर क्षेत्र
समुद्रतल से लगभग 4,200 फिट की ऊँचाई पर स्थित शून्यशिखर से मालिनी घाटी की तलहटी में बसे समस्त गाँव एकदम साफ व स्पष्ट नजर आते हैं। मौसम अगर साफ हो तो यहाँ से नजीबाबाद, लालढांग आदि क्षेत्र भी दिख जाते हैं। ऊपर जो कुछ फोटोग्राफ्स साझा किए हैं उनके माध्यम से आप आसानी से भाबर क्षेत्र को देख पा रहे होंगे।
शून्यशिखर के आसपास वन्यजीवों व पक्षियों की संगीतमय दुनिया
ईश्वर ने संपूर्ण मालन घाटी को सभी प्रकार की प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है। तरह-तरह के पेड़-पौधे, लताएँ, झरने, सदानीरा मालिनी नदी के साथ-साथ यह मालन घाटी वन्यजीवों एंव पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों से भी संपन्न है। पक्षी प्रेमियों व बर्ड वाचिंग करने वालों के लिए संपूर्ण मालन घाटी एक बेहतर ट्रैल है। यहाँ स्थानीय पक्षियों के साथ-साथ प्रवासी पक्षी भी बहुतायत में पाए जाते हैं। वन्यजीवों में यहाँ हाथी, तेंदुआ, भालू, हिरन, बंदर, जंगली सूअर, गिलहरी, सियार, खरगोश, लंगूर, ऊदबिलाव आदि पाए जाते हैं। वहीं पक्षियों में यहाँ क्रेस्टेड किंगफिशर, व्हाइट-थ्रोटेड फैनटेल, व्हाइट कैप्ड रेडस्टार्ट, कॉमन किंगफिशर, व्हाइट-थ्रोटेड किंगफिशर, ब्राउन रॉक चैट, रेड-वेटल्ड लैपविंग, रोज-रिंगेड पैराकीट, प्लम-हेडेड पैराकीट, ग्रे-ब्रेस्टेड प्रिंसियास, ब्लू-विंग्ड मिनला, ब्लू व्हिस्लिंग-थ्रश, स्पॉटेड फोर्कटेल, प्लंबियस रेडस्टार्ट, व्हाइट वैगटेल, हिमालयन ग्रिफ़ॉन, स्टेपी ईगल आदि पाए जाते हैं।
ट्रैक हाईलाइट्स
ट्रैक की दूरी (एक तरफ) – 7.17 किमी
डिफिकल्टी लेवल – मॉडरेट
अवधि – 1N/2D
निर्देशांक – 29°48’54″N 78°28’56″E
ऊँचाई – 1,267.44 m
ब्लाक – दुगड्डा
तहसील – कोटद्वार
जिला – पौड़ी गढ़वाल
राज्य – उत्तराखण्ड
शून्य शिखर ट्रैक का मैप
यह साहसिक पर्यटन में आपकी रूचि एंव मालन घाटी के रोमांच व इतिहास के प्रति आपका प्रेम ही है जो आपने यह पूरा ब्लॉग पढ़ा। अपने व्यस्तता के बीच अपना बहुमूल्य समय देने के लिए मैं आपका आभारी हूँ। ब्लॉग पढ़कर अगर आप कोई विचार साझा करना चाहें तो मुझे आपको सुनके बहुत खुशी होगी। फिर मिलेंगे किसी नई भ्रमण कथा के साथ। तबतक इजाजत दीजिए। धन्यवाद।
About us
“Hello, I’m Mohit Kandwal, a resident of Kotdwara and a fervent explorer of nature’s wonders. My passions include wildlife photography, trekking, and embracing the thrill of adventure. For me, bird photography is not just a hobby; it’s a meditation pathway, capturing the essence of nature in its purest form. Join me on my journey as I share glimpses of the wild through my lens and the tales of adventures that unfold amid nature’s beauty.”
I’m Aman Badola, hailing from the picturesque town of Kotdwara. My passion lies in exploring new horizons, conquering challenges, and trekking the majestic mountains, turning every adventure into a triumph.
बहुत सुन्दर ❤️❤️
बहुत-बहुत धन्यवाद
Nycc first tym hear about this trek in our hometown
Thanks ☺️
Amazing!! Nayi cheez sikhne ko mili iss jagah ke baare me pehli baar pta chala warna hamne bhi sirf raat ko pahado me light chamakti hui dekhi hai lekin ab iss jagah se waqib hain.
Great work bhaiya 👏💐
(And the views are actually amazing!)
Thank you very much. ❤️
बहुत सुंदर भाई जी कभी हमें भी ले चलो 😃✌️
हाँ जी चलो।
उत्तम
धन्यवाद मित्र
वाह: शानदार जानदार शून्य शिखर यात्रा वृतांत। बहुत ही शानदार लिखा है
बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
वाह! ऐसी रोमांचक यात्रा का वृत्तांत पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मन कर रहा है कि अभी कण्वाश्रम से यात्रा शुरू कर दूं। धन्यवाद भाई। आशा है भविष्य में भी आप ऐसी रोमांचक यात्राओं से पौराणिक स्थानों का परिचय कराओगे 💕
बहुत-बहुत धन्यवाद भय्या। आप बड़े भाईयों के उत्साहवर्धन व प्रेरणाद से ही सबकुछ हो पाता है। और मैं हमेशा प्रयास करता रहूँगा कि आप सब तक इतिहास की गर्त में समा चुके पौराणिक महत्व के विषयों को पहुँचा सकूँ।
Bahut shandar.. ap logon ke jajbe ko salam 👏
धन्यवाद 🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर मोहित भाई ऐसे ही आगे बढ़ते रहो आपके साथ साथ हमे भी जानकारी मिल रही है कि हमारे उत्तराखंड मे कितनी सुंदर सुंदर जगह है .. mahadav bless you bro…khub tarakki Karo..from..jp
बहुत-बहुत धन्यवाद ❤️
बहुत-बहुत धन्यवाद
Nice blog 👌❤️
Thanks ☺️
Bhut sunder bhai.. Mera Gaon hai eda malla
धन्यवाद भाई जी।
Very beautiful track
Before this video I never heard about this place
Ur experience all over felt me like I will also be up there soon
All the best mohit for ur future tracks
Thank you very much for your time and your kind appreciation.
Great work, brother! Please visit our village, Ginthala, and explore it. It is located approximately 20 km from Kotdwara’s main market. Here, you’ll find a wide variety of birds and animals.
Thanks for your valuable comment. And I will surely visit your village.